मुझे जितना इल्म है, जब अमेरिकां की कार कंपनियों को राहत दी जायेगी, तो सोने के दाम बढेंगे। आपका क्या विचार हैं ? हिंदुस्तान में येही होता आया है। तो जो "म्य्क्रो" पर है तो क्या वोह "मैक्रो " पर लागू नही होगा ? मेरा पूरा विश्वास है की वेस्टर्न सभ्यता हमारे पर हावी होना चाहती है। वोह तो उधार की जिंदिगी जी रहे हैं। और गरीबो के पैसे पर मौज करना चाहते हैं। विकासशील देशों की जनता की चैन और नींद से उनेहे उदाह है। वे नफे को जरूरत से ज्यादा तरजीह देते हैं । वोह केवल इतना ही जानते हैं की " मेरा नफ़ा, तेरा नुक्सान" यानि की "जीरो सम गेम"। क्या कुदरत का यही नियम है ? नही, अगर ऐसा होता, तो सूरज वास्तव में डूब गया होता, और दुनिया ख़तम हो गयी होती ।
भारत में बहुत से लोग यह भी नही जानते की दुनिया गोल है । जब वोह यह पढ़ते है की " १०० लाईट मील दूर कोई तारा डूब गया, तो क्या वोह इस बात को समझ पाँतें हैं ? क्या दुनिया के आम लोग इस बात को समझ पाँतें है ? क्या यह पुराने जमाने में जैसे "ओझाओ का काम होता था, वैसा नही है ?
कार बनाने वाली कंपनी के , कंपनी के हवाई जहाज से भीख मांगने जाते हैं ? भीख मना कर दी जाती है, तो कहते हैं की वोह १ डालर प्रतिवर्ष की तनख्वाह पर काम करेंगे। क्यों ? अगर उनको वास्तव में जन कल्याण का ख्याल था तो ऐसा क्यों ?
मुझे केवल इतना कहना है, की आम आदमी, अपनी जिन्दगी में केवल अपनी मजदूरी की कमाई खाने में ही विश्वास करता है, और पूरी दुनिया में यह राजनेता और बाबू , ऐसी परिस्थिति खडी करने की कोशिश करते हैं, की आपकी ही कमाई/ बचत पर मौज करते हैं ।
हम अक्सर कह्तेयें हैं की स्य्स्तेम खराब है । क्या हम सिस्टम के हिस्से नही हैं ?
'ग्लोबल वार्मिंग" की बात कही जाती है, तो हम हवाई जहाज/कार को क्यों बढावा डे रहे हैं ?
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1 comment:
theek hai
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