Sunday, September 21, 2008

. आज हम कहते हैं की ग्लोबल वार्मिंग है, और दूसीरी तरफ़ हम विज्ञापन पर जोर देते हैंजिससे उपभोक्तावाद को भरवा मिलता है , और उससे वायुमंडल प्रभावित होता हैतो क्या कारों, और अन्य मशीनों पर प्रतिभंद नही लगना चाहिए ? और उनके विज्ञापन पर रोक नही लगनी चाहिये ?

क्या भारत में जनता के पैसे ( कर ) का सही उपयोग हो रहा है, नेताओं और बाबुओं ने तो अपनी आय तो बढ़ा ली ( इसमे उनकी ऊपुर की आय शामिल नही है ) और क्या ये सत्य नही नही है की आज भी यहाँ लगभग आधे लोग गरीब हैं, और ज्यादातर गाओं वाले नही है ?

क्या भात्रत के लिए उदोगपति किसान से ज्यादा महत्वपूर्ण है, जब लगभग ७०% लोग वही रहते है ?

भारत के प्रथम राष्ट्रपति ने हमें स्वालंबी होने की सलाह नही दी थी ? क्या, उसके बाद किसी भी ने इस पर गौर किया ?

क्या यह आश्चर्य जनक नही है की हमारे यहाँ उतने कानून हैंजितने ज्यादा अनपढ़ हैं ?

क्या ऐसे कानून , जो आम आदमी समझ ना पाये या जिनको वास्तव में लागू ना किया जा सके रहना चाहिये ?

क्या कानूनों को बदलने की जरूरत नही है ? , जब देश का एक प्रधान मंत्री पर कई आरोप लगते है, और वो न्यायालय द्वारा बरी कर दिया जाता है, बिना circumstantial एविडेंस पर जोर दिये ?

क्या यह हमारी इन्वेस्टिंग अजएंसेस न्यायालों को भी धक् के दायरे में नही लाता ?

क्या हम ऐसा सपना नही देख रहे, बिना साधन के हम चाँद पर जाना चाहते हैं ?

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